Shraddha RAM Phillauri
पं. श्रद्धा राम शर्मा (श्रद्धा राम फिल्लौरी) :
(प्रसिद्ध आरती ‘ओम जय जगदीश हरे’ के रचयिता) “ओम जय जगदीश हरे” आरती आज हर हिन्दू घर में गाई जाती है। इस आरती की तर्ज पर अन्य देवी देवताओं की आरतियाँ बन चुकी हैं और गाई जाती हैं।
किसी ने कहा ये आरती तो पौराणिक काल से गाई जाती है। किसी ने इस आरती को वेदों का एक भाग बताया। और एक ने तो ये भी कहा कि सम्भवत: इसके रचयिता अभिनेता-निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार हैं। परंतु इस मूल आरती के रचयिता के बारे में काफी कम लोगों को पता है
इस आरती के रचयिता थे पं. श्रद्धा राम शर्मा या श्रद्धा राम फिल्लौरी। पं. श्रद्धा राम शर्मा का जन्म पंजाब के जिले जालंधर में स्थित फिल्लौर नगर में हुआ था। वे सनातन धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, संगीतज्ञ तथा हिन्दी और पंजाबी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। उनका विवाह सिख महिला महताब कौर के साथ हुआ था। बचपन से ही उन्हें ज्योतिष और साहित्य के विषय में उनकी गहरी रूचि थी। उन्होनें वैसे तो किसी प्रकार की औपचारिक शिक्षा हासिल नहीं की थी परंतु उन्होंने सात साल की उम्र तक गुरुमुखी में पढाई की और दस साल की उम्र तक वे संस्कृत, हिन्दी, फ़ारसी भाषाओं तथा ज्योतिष की विधा में पारंगत हो चुके थे। उन्होने पंजाबी (गुरूमुखी) में ‘सिक्खां दे राज दी विथियाँ’ और ‘पंजाबी बातचीत’ जैसी पुस्तकें लिखीं। ‘सिक्खां दे राज दी विथियाँ’ उनकी पहली किताब थी। इस किताब में उन्होनें सिख धर्म की स्थापना और इसकी नीतियों के बारे में बहुत सारगर्भित रूप से बताया था। यह पुस्तक लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय साबित हुई थी और अंग्रेज सरकार ने तब होने वाली ICS (जिसका नाम अब IAS हो गया है) परीक्षा के पाठ्यक्रम में इस पुस्तक को शामिल किया था।
पं. श्रद्धा राम शर्मा पंजाबी के अच्छे जानकार थे और उन्होनें अपनी पहली पुस्तक गुरूमुखी मे ही लिखी थी परंतु वे मानते थे कि ‘हिन्दी के माध्यम से ही अपनी बात को अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाया जा सकता है।’ हिन्दी के जाने माने लेखक और साहित्यकार पं. रामचंद्र शुक्ल ने पं. श्रद्धा राम शर्मा और भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिन्दी के पहले दो लेखकों में माना है। पं. श्रद्धा राम शर्मा जी ने वर्ष 1877 में ‘भाग्यवती’ नामक एक उपन्यास लिखा था जो हिन्दी में था। माना जाता है कि यह हिन्दी भाषा का पहला उपन्यास है। इस उपन्यास का प्रकाशन 1888 में हुआ था। इसके प्रकाशन से पहले ही पं. श्रद्धा राम जी का निधन हो गया परंतु उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने काफी कष्ट सहन करके भी इस उपन्यास का प्रकाशन करावाया था।
वैसे पं. श्रद्धा राम शर्मा धार्मिक कथाओं और आख्यानों के लिए काफी प्रसिद्ध थे। वे महाभारत का उध्दरण देते हुए अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जनजागरण का ऐसा वातावरण तैयार कर देते थे कि उनके आख्यान सुनकर प्रत्येक व्यक्ति के भीतर देशभक्ति की भावना भर जाती थी। इससे अंग्रेज सरकार की नींद उड़ने लगी और उसने 1865 में पं. श्रद्धा राम को फुल्लौरी से निष्कासित कर दिया और आसपास के गाँवों तक में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी। लेकिन उनके द्वारा लिखी गई किताबों का जो पठन विद्यालयों में हो रहा था, वह जारी रहा। निष्कासन का उन पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उनकी लोकप्रियता और बढ गई। निष्कासन के दौरान भी उन्होनें कई पुस्तकें लिखीं और लोगों के सम्पर्क में रहे। पं. श्रद्धा राम ने अपने व्याख्यानों से लोगों में अंग्रेज सरकार के खिलाफ क्रांति की मशाल ही नहीं जलाई बल्कि साक्षरता के लिए भी अभूतपूर्व काम किया।
1870 में उन्होंने एक ऐसी आरती लिखी जो भविष्य में घर-घर में गाई जानी थी। वह आरती थी- “ओम जय जगदीश हरे…” पं. शर्मा जहाँ कहीं व्याख्यान देने जाते “ओम जय जगदीश” आरती गाकर सुनाते थे। उनकी यह आरती लोगों के बीच लोकप्रिय होने लगी और आज कई पीढियाँ गुजर जाने के बाद भी यह आरती गाई जाती है और कालजई हो गई है। इस आरती का उपयोग प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक मनोज कुमार ने अपनी एक फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ में किया था और इसलिए कई लोग इस आरती के साथ मनोज कुमार का नाम जोड़ देते हैं। पं. शर्मा सदैव प्रचार और आत्म प्रशंसा से दूर रहे थे। शायद यह भी एक वजह हो कि उनकी रचनाओं को चाव से पढ़ने वाले लोग भी उनके जीवन और उनके कार्यों से परिचित नहीं हैं। 24 जून वर्ष 1881 ईस्वी को लाहौर में पं. श्रद्धा राम शर्मा ने आखिरी सांस ली।
Source: https://twitter.com/sambhashan_in/status/1294207594844676096